ख़ूँ बहाने का बहाना है भला मेरे बाद
तीन दिन पान भी खाना न ज़रा मेरे बाद
फ़ातिहा पढ़ के वो रोने जो लगा मेरे बाद
शोर-ए-महशर मिरे मदफ़न पे उठा मेरे बाद
दिल-ए-अहबाब न मदफ़न पे जला मिस्ल-ए-चराग़
फिर गई ऐसी ज़माने की हवा मेरे बाद
क़ब्र को तकिया-ए-आग़ोश बना कर बैठा
मेरे क़ातिल का कहीं दिल न लगा मेरे बाद
कारवाँ में पस-ओ-पेश एक है मंज़िल सब की
हो गई रेहलत-ए-हर-शाह-ओ-गदा मेरे बाद
टुकड़े होगा मेरे ग़म में सर-ए-साग़र साक़ी
काट डालेगी सुराही भी गला मेरे बाद
न रहा बुलबुल ओ परवाना को इश्क़-ए-गुल-ओ-शम्अ
नाम को भी कोई आशिक़ न रहा मेरे बाद
उस सा माशूक़ जहाँ में कोई मुझ सा आशिक़
'अर्श' आगे न हुआ था न हुआ मेरे बाद
ग़ज़ल
ख़ूँ बहाने का बहाना है भला मेरे बाद
मीर कल्लू अर्श