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ख़ूँ बहाने का बहाना है भला मेरे बाद | शाही शायरी
KHun bahane ka bahana hai bhala mere baad

ग़ज़ल

ख़ूँ बहाने का बहाना है भला मेरे बाद

मीर कल्लू अर्श

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ख़ूँ बहाने का बहाना है भला मेरे बाद
तीन दिन पान भी खाना न ज़रा मेरे बाद

फ़ातिहा पढ़ के वो रोने जो लगा मेरे बाद
शोर-ए-महशर मिरे मदफ़न पे उठा मेरे बाद

दिल-ए-अहबाब न मदफ़न पे जला मिस्ल-ए-चराग़
फिर गई ऐसी ज़माने की हवा मेरे बाद

क़ब्र को तकिया-ए-आग़ोश बना कर बैठा
मेरे क़ातिल का कहीं दिल न लगा मेरे बाद

कारवाँ में पस-ओ-पेश एक है मंज़िल सब की
हो गई रेहलत-ए-हर-शाह-ओ-गदा मेरे बाद

टुकड़े होगा मेरे ग़म में सर-ए-साग़र साक़ी
काट डालेगी सुराही भी गला मेरे बाद

न रहा बुलबुल ओ परवाना को इश्क़-ए-गुल-ओ-शम्अ
नाम को भी कोई आशिक़ न रहा मेरे बाद

उस सा माशूक़ जहाँ में कोई मुझ सा आशिक़
'अर्श' आगे न हुआ था न हुआ मेरे बाद