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ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के | शाही शायरी
KHushi se apna ghar aabaad kar ke

ग़ज़ल

ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के

ज़हीर रहमती

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ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के
बहुत रोएँगे तुम को याद कर के

ख़याल ओ ख़्वाब भी हैं सर झुकाए
ग़ुलामी बख़्श दी आज़ाद कर के

जो कहने के लिए ही आबरू थी
वो इज़्ज़त भी गई फ़रियाद कर के

परिंदे सर पे घर रक्खे हुए हैं
मुझे छोड़ेंगे ये सय्याद कर के

यहाँ वैसे भी क्या आबाद रहता
ये धड़का तो गया बर्बाद कर के

कहाँ हमदर्दियों की दाद मिलती
बहुत अच्छे रहे बेदाद कर के

उसे भी क्या पता था हाल अपना
तड़पता है सितम ईजाद कर के