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ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का | शाही शायरी
KHushi mili to ye aalam tha bad-hawasi ka

ग़ज़ल

ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का

ज़फ़र इक़बाल

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ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का
कि ध्यान ही न रहा ग़म की बे-लिबासी का

चमक उठे हैं जो दिल के कलस यहाँ से अभी
गुज़र हुआ है ख़यालों की देव-दासी का

गुज़र न जा यूँही रुख़ फेर कर सलाम तो ले
हमें तो देर से दावा है रू-शनासी का

ख़ुदा को मान कि तुझ लब के चूमने के सिवा
कोई इलाज नहीं आज की उदासी का

गिरे पड़े हुए पत्तों में शहर ढूँडता है
अजीब तौर है इस जंगलों के बासी का