ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया
ख़ाली ही सही मेरी तरफ़ जाम तो आया
काफ़ी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात
आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया
अपनों ने नज़र फेरी तो दिल तू ने दिया साथ
दुनिया में कोई दोस्त मिरे काम तो आया
वो सुब्ह का एहसास हो या मेरी कशिश हो
डूबा हुआ ख़ुर्शीद लब-ए-बाम तो आया
लोग उन से ये कहते हैं कि कितने हैं 'शकील' आप
उस हुस्न के सदक़े में मिरा नाम तो आया
ग़ज़ल
ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया
शकील बदायुनी