EN اردو
ख़ुश हैं बहुत मिज़ाज-ए-ज़माना बदल के हम | शाही शायरी
KHush hain bahut mizaj-e-zamana badal ke hum

ग़ज़ल

ख़ुश हैं बहुत मिज़ाज-ए-ज़माना बदल के हम

महशर इनायती

;

ख़ुश हैं बहुत मिज़ाज-ए-ज़माना बदल के हम
लेकिन ये शेर किस को सुनाएँ ग़ज़ल के हम

ऐ मस्लहत चलें भी कहाँ तक सँभल के हम
अंदाज़ कह रहे हैं कि इंसाँ हैं कल के हम

शायद उरूस-ए-ज़ीस्त का घूँघट उलट गया
अब ढूँडने लगे हैं सहारे अजल के हम

बदलें ज़रा निगाह के अंदाज़ आप भी
उट्ठे हैं कुछ उसूल वफ़ा के बदल के हम

जैसे थका थका कोई गुम-कर्दा कारवाँ
उठते हैं बैठ जाते हैं कुछ दूर चल के हम

हँसना तो दरकिनार है रो भी नहीं सके
'महशर' चले हैं किस की गली से निकल के हम