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ख़ुदा-रा आ के मिरी लो ख़बर कहाँ हो तुम | शाही शायरी
KHuda-ra aa ke meri lo KHabar kahan ho tum

ग़ज़ल

ख़ुदा-रा आ के मिरी लो ख़बर कहाँ हो तुम

यासीन ज़मीर

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ख़ुदा-रा आ के मिरी लो ख़बर कहाँ हो तुम
मिरे हबीब मिरे चारा-गर कहाँ हो तुम

न रास्तों की ख़बर और न मंज़िलों का पता
कहाँ मैं जाऊँ मिरे राहबर कहाँ हो तुम

ऐ बाग़-ए-दिल के मिलनसार बाग़बान-ए-ज़ईफ़
दरख़्त देने लगे हैं समर कहाँ हो तुम

सुनाई देती है हर पल मुझे तिरी आवाज़
दिखाई क्यूँ नहीं देते मगर, कहाँ हो तुम?

ग़ज़ब की धूप है और साएबान कोई नहीं
मैं जल रहा हूँ मिरे बाम-ओ-दर कहाँ हो तुम

कुछ उन की ख़ैर ख़बर साथ ले के आए हो?
चले भी आओ मिरे नामा-बर कहाँ हो तुम