ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा
ये दरमियान से अब पर्दा-ए-हिजाब उठा
ये कौन बादा-परस्ती है ऐ बुत-ए-बद-मसत
उठा जो बज़्म से तेरी सो हो कबाब उठा
मुतालेए से तिरे बैत-अब्रूओं के शोख़
रक्खी है शैख़ ने अब ताक़ पर किताब उठा
बसान-ए-नक़्श-ए-क़दम जिस ने पा-तुराब किया
वो राह-ए-इश्क़ में मिट कर ग़रज़ शिताब उठा
ब-चश्म-ए-तर ही कोई दम तू बैठ वर्ना अबस
तू एक दम के लिए बहर से हुबाब उठा
पिया है शीशा-ए-गर्दूं से जिस ने इक जुरआ
मिसाल-ए-जाम वो बा-दीदा-पुर-आब उठा
'नसीर' शोर न कर फ़ित्ना होवेगा बरपा
ख़ुदा-न-ख़्वास्ता अब गर वो मस्त-ए-ख़्वाब उठा
ग़ज़ल
ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा
शाह नसीर