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ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा | शाही शायरी
KHuda ke waste ai yar hum sin aa mil ja

ग़ज़ल

ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा

आबरू शाह मुबारक

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ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा
दिलों की खोल घुंडी ग़ुंचे की तरह खिल जा

जिगर में चश्म के होतियाँ हैं दाग़ तब पुतलियाँ
नज़र सीं ओट तिरा गाल जब कि इक तिल जा

जुनूँ के जाम कूँ ले शीशा-ए-शराब को तोड़
ख़िरद गली सीं परी पैकराँ की बे-दिल जा

अँखियों सीं जान बचाना नज़र तब आता है
तड़फ में छोड़ के बिस्मिल को जब कि क़ातिल जा

हया कूँ ग़ैर सूँ मत गर्म मिल के दे बर्बाद
न हो कि 'आबरू' इस तरह ख़ाक में मिल जा