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ख़ुदा भी तरफ़-दार निकला तुम्हारा | शाही शायरी
KHuda bhi taraf-dar nikla tumhaara

ग़ज़ल

ख़ुदा भी तरफ़-दार निकला तुम्हारा

दत्तात्रिया कैफ़ी

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ख़ुदा भी तरफ़-दार निकला तुम्हारा
ये झगड़ा चुका अब हमारा तुम्हारा

बुतो शौक़-ए-दीदार से सर न चढ़ना
नज़ारा किसी का तमाशा तुम्हारा

बड़े बा-हया और पर्दा-नशीं हो
है हर कू-ओ-बर्ज़न में चर्चा तुम्हारा

उलू में ही झूटा हूँ पैमाँ-शिकन हूँ
नहीं अब तो कुछ मुझ से शिकवा तुम्हारा

दिल आए न क्यूँ क्यूँ न ईमान जाए
ये सूरत तुम्हारी ये ग़म्ज़ा तुम्हारा

दिल-ओ-जान 'कैफ़ी' है क़ुर्बान तुम पर
नहीं इस से इंकार ज़ेबा तुम्हारा