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ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए | शाही शायरी
KHud uTh ke hath mere gareban mein aa gae

ग़ज़ल

ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए

सीमाब अकबराबादी

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ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए
शायद क़दम जुनूँ के गुलिस्ताँ में आ गए

इस के सिवा बताएँ असीरी का क्या सबब
घबराए अंजुमन से तो ज़िंदाँ में आ गए

क्या होगा चार फूलों से ऐ मौसम-ए-बहार
ये तो हमारे गोशा-ए-दामाँ में आ गए

जोश-ए-बहार और ये बे-इख़्तियारियाँ
सू-ए-चमन चले थे बयाबाँ में आ गए

'सीमाब' किब्र-ओ-नाज़ का अंजाम कुछ न पूछ
सब रफ़्ता रफ़्ता गोर-ए-ग़रीबाँ में आ गए