ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए
शायद क़दम जुनूँ के गुलिस्ताँ में आ गए
इस के सिवा बताएँ असीरी का क्या सबब
घबराए अंजुमन से तो ज़िंदाँ में आ गए
क्या होगा चार फूलों से ऐ मौसम-ए-बहार
ये तो हमारे गोशा-ए-दामाँ में आ गए
जोश-ए-बहार और ये बे-इख़्तियारियाँ
सू-ए-चमन चले थे बयाबाँ में आ गए
'सीमाब' किब्र-ओ-नाज़ का अंजाम कुछ न पूछ
सब रफ़्ता रफ़्ता गोर-ए-ग़रीबाँ में आ गए
ग़ज़ल
ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए
सीमाब अकबराबादी