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ख़ुद को दुनिया में जो राज़ी-ब-रज़ा कहते हैं | शाही शायरी
KHud ko duniya mein jo raazi-ba-raza kahte hain

ग़ज़ल

ख़ुद को दुनिया में जो राज़ी-ब-रज़ा कहते हैं

ज़ेब उस्मानिया

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ख़ुद को दुनिया में जो राज़ी-ब-रज़ा कहते हैं
अपनी हस्ती से वो इक बात सिवा कहते हैं

मौत आती है तो इक फ़र्ज़ अदा होता है
इन को धोका है क़ज़ा को जो क़ज़ा कहते हैं

दर्द दिल को तिरी यक-गूना मुराआत से है
नुक्ता-चीं इस को भी अंदाज़-ए-जफ़ा कहते हैं

हरम ओ दैर हुए तर्क-ए-अमल से रुस्वा
देखिए अहल-ए-अक़ीदत इसे क्या कहते हैं

सूरतें हैं ये दो एहसास-ए-दरूँ की ऐ 'ज़ेब'
हश्र में जिन को सज़ा और जज़ा कहते हैं