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ख़ुद-ब-ख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है | शाही शायरी
KHud-ba-KHud aankh badal kar ye sawal achchha hai

ग़ज़ल

ख़ुद-ब-ख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है

हफ़ीज़ जौनपुरी

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ख़ुद-ब-ख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है
रोज़ कब तक कोई पूछा करे हाल अच्छा है

हिज्र में ऐश-ए-गुज़िश्ता का ख़याल अच्छा है
हो झलक जिस में ख़ुशी की वो मआल अच्छा है

दाग़ बेहतर है वही हो जो दिल-ए-आशिक़ में
जौर है आरिज़-ए-ख़ूबाँ पे वो ख़ाल अच्छा है

देख उन ख़ाक के पुतलों की अदाएँ ज़ाहिद
उन से किस बात में हूरों का जमाल अच्छा है

कीजिए और भी शिकवे कि मिटे दिल का ग़ुबार
बातों बातों में निकल जाए मलाल अच्छा है

तंदुरुस्ती से तो बेहतर थी मिरी बीमारी
वो कभी पूछ तो लेते थे कि हाल अच्छा है

जो निगाहों में समा जाए वो सूरत अच्छी
जो ख़रीदार को जच जाए वो माल अच्छा है

चारागर को मिरे ये भी नहीं तमईज़ अभी
कौन सा हाल बुरा कौन सा हाल अच्छा है

दे ख़ुदा ज़र तो कोई मय-कदा आबाद करें
अच्छे कामों में जो हो सर्फ़ वो माल अच्छा है

हँस के कहते हैं कभी हाथ से उड़ने का नहीं
ताइर-ए-रंग-ए-हिना बे-पर-ओ-बाल अच्छा है

जो न निकले कभी दिल से वो तमन्ना अच्छी
जो न आए कभी लब तक वो सवाल अच्छा है

हसरत आती है हमें हाल पर अपने क्या क्या
सुनते हैं जब किसी बीमार का हाल अच्छा है

हूर के ज़िक्र पर आईना उठा कर देखा
उस से ईमाँ है कि मेरा ही जमाल अच्छा है

आरज़ू मेरी न पूरी हो कोई बात है ये
काश इतना वो समझ लें कि सवाल अच्छा है

मुफ़्त मिलता है ख़राबात में हर मय-कश को
ठर्रा पीने के लिए जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है

सैंकड़ों बर्क़-जमालों का गुज़र होता है
तूर-ए-सीना से मिरा बाम-ए-ख़याल अच्छा है

हूँ गदा-ए-दर-ए-मय-ख़ाना तकल्लुफ़ से बरी
टूटा-फूटा ये मेरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है

हाल सुनते नहीं बे-ख़ुद हैं ये मस्जिद वाले
उन से कुछ मय-कदे वालों ही का हाल अच्छा है

दफ़अ'तन तर्क-ए-मोहब्बत में ज़रर है जी का
रफ़्ता रफ़्ता जो मिटे दिल से ख़याल अच्छा है

अब के हर शहर में फैला है जो ताऊन 'हफ़ीज़'
मरने वालों को ख़ुशी है कि ये साल अच्छा है