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खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन | शाही शायरी
khile hain phul ki surat tere visal ke din

ग़ज़ल

खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन

अब्दुल अहद साज़

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खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन
तिरे जमाल की रातें तिरे ख़याल के दिन

नफ़स नफ़स नई तहदारियों में ज़ात की खोज
अजब हैं तेरे बदन तेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल के दिन

ब-ज़ौक़-ए-शेर ब-जब्र-ए-मआश यकजा हैं
मिरे उरूज की रातें मिरे ज़वाल के दिन

ख़रीद बैठे हैं धोके में जिंस-ए-उम्र-ए-दराज़
हमें दिखाए थे मकतब ने कुछ मिसाल के दिन

न हादसे न तसलसुल न रब्त-ए-उम्र कहीं
बिखर के रह गए लम्हों में माह-ओ-साल के दिन

मैं बढ़ते बढ़ते किसी रोज़ तुझ को छू लेता
कि गिन के रख दिए तू ने मिरी मजाल के दिन

ये तजरबात की वुसअत ये क़ैद-ए-सौत-ओ-सदा
न पूछ कैसे कड़े हैं ये अर्ज़-ए-हाल के दिन