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खिड़कियाँ मत खोल जिंस-ए-जाँ उठा ले जाएगा | शाही शायरी
khiDkiyan mat khol jins-e-jaan uTha le jaega

ग़ज़ल

खिड़कियाँ मत खोल जिंस-ए-जाँ उठा ले जाएगा

नश्तर ख़ानक़ाही

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खिड़कियाँ मत खोल जिंस-ए-जाँ उठा ले जाएगा
घर के घर को शहर का रेला बहा ले जाएगा

सब नमक एहसास का सारी हलावत ज़ख़्म की
आने वाले दिन का डर सारा मज़ा ले जाएगा

इस बरसती रात का ये आख़िरी आँसू भी कल
मुझ से चाहत उस की आँखों से वफ़ा ले जाएगा

किश्त-ए-दिल को चाट लेगा किर्म-ए-दुनिया और फिर
बच रहेगा कुछ तो वो सैल-ए-हवा ले जाएगा

जल-बुझेगा इक न इक दिन सब का सब शहर-ए-वफ़ा
रह गई इक राख सो पानी बहा ले जाएगा

तेज़-तर तूफ़ाँ की आहट और यहाँ मिट्टी न आग
अब इसे आने भी दो ये मुझ से क्या ले जाएगा

वो मिरा सफ़्फ़ाक दुश्मन लाख मैं ग़ाफ़िल न हूँ
ख़ुद मिरे घर से मुझे इक दिन बुला ले जाएगा