EN اردو
ख़याल-ओ-ख़्वाब की अब रहगुज़र में रहता है | शाही शायरी
KHayal-o-KHwab ki ab rahguzar mein rahta hai

ग़ज़ल

ख़याल-ओ-ख़्वाब की अब रहगुज़र में रहता है

सय्यद शकील दस्नवी

;

ख़याल-ओ-ख़्वाब की अब रहगुज़र में रहता है
अजीब शख़्स है अक्सर सफ़र में रहता है

किसी का देखना मुड़ कर वो चश्म-ए-तर से मुझे
हमेशा अब वही मंज़र नज़र में रहता है

तमाम रास्ते मुड़ कर यहीं पहुँचते हैं
वो इस ख़याल से अब अपने घर में रहता है

मसर्रतों के किनारे तो डूब जाते हैं
सफ़ीना दिल का ग़मों के भँवर में रहता है

कहाँ है कैसे बताएँ यही समझ लीजे
'शकील' अब तो किसी चश्म-ए-तर में रहता है