ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ बर्ग-ओ-बार का मौसम
बिछड़ गया तिरी सूरत बहार का मौसम
कई रुतों से मिरे नीम-वा दरीचों में
ठहर गया है तिरे इंतिज़ार का मौसम
वो नर्म लहजे में कुछ तो कहे कि लौट आए
समाअ'तों की ज़मीं पर फुवार का मौसम
पयाम आया है फिर एक सर्व-क़ामत का
मिरे वजूद को खींचे है दार का मौसम
वो आग है कि मिरी पोर पोर जलती है
मिरे बदन को मिला है चिनार का मौसम
रफ़ाक़तों के नए ख़्वाब ख़ुशनुमा हैं मगर
गुज़र चुका है तिरे ए'तिबार का मौसम
हवा चली तो नई बारिशें भी साथ आईं
ज़मीं के चेहरे पे आया निखार का मौसम
वो मेरा नाम लिए जाए और मैं उस का नाम
लहू में गूँज रहा है पुकार का मौसम
क़दम रखे मिरी ख़ुशबू कि घर को लौट आए
कोई बताए मुझे कू-ए-यार का मौसम
वो रोज़ आ के मुझे अपना प्यार पहनाए
मिरा ग़ुरूर है बेले के हार का मौसम
तिरे तरीक़-ए-मोहब्बत पे बारहा सोचा
ये जब्र था कि तिरे इख़्तियार का मौसम
ग़ज़ल
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ बर्ग-ओ-बार का मौसम
परवीन शाकिर