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ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते | शाही शायरी
KHayal ki tarah chup ho sada hue hote

ग़ज़ल

ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते

राशिद आज़र

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ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते
कम-अज़-कम अपनी ही आवाज़-ए-पा हुए होते

तरस रहा हूँ तुम्हारी ज़बाँ से सुनने को
कि तुम कभी मिरा हर्फ़-ए-वफ़ा हुए होते

अजीब कैफ़ीयत-ए-बे-दिली है दोनों तरफ़
कि मिल के सोच रहे हैं जुदा हुए होते

बहुत अज़ीज़ सही हम को अपनी ख़ुद-दारी
मज़ा तो जब था कि तेरी अना हुए होते

ये आरज़ू रही अपनी जो उम्र भर के लिए
तिरी ज़बाँ पे रहे वो मज़ा हुए होते

सुमूम की तरह जीने से फ़ाएदा किया है
किसी के वास्ते बाद-ए-सबा हुए होते

हमेशा माइल-ए-हुस्न-ए-बुताँ रहे 'आज़र'
कभी तो क़ाइल-ए-हुस्न-ए-ख़ुदा हुए होते