ख़याल-ए-यार सदा चश्म-ए-नम के साथ रहा
मिरा जो चाह में दम था वो दम के साथ रहा
गया सहर वो परी-रू जिधर जिधर यारो
मैं उस के साया-सिफ़त हर क़दम के साथ रहा
फिरा जो भागता मुझ से वो शोख़ आहू-चश्म
तो मैं भी थक न रहा गो वो रम के साथ रहा
अकेला उस को न छोड़ा जो घर से निकला वो
हर इक बहाने से मैं उस सनम के साथ रहा
'नज़ीर' पीर हुआ तो भी बार-ए-नाज़-ए-बुताँ
कुछ उस के दोश के कुछ पुश्त-ए-ख़म के साथ रहा
ग़ज़ल
ख़याल-ए-यार सदा चश्म-ए-नम के साथ रहा
नज़ीर अकबराबादी