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ख़याल-ए-यार जब आता है बेताबाना आता है | शाही शायरी
KHayal-e-yar jab aata hai betabana aata hai

ग़ज़ल

ख़याल-ए-यार जब आता है बेताबाना आता है

जगन्नाथ आज़ाद

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ख़याल-ए-यार जब आता है बेताबाना आता है
कि जैसे शम्अ की जानिब कोई परवाना आता है

तसव्वुर इस तरह आता है तेरा महफ़िल-ए-दिल में
मिरे हाथों में जैसे ख़ुद ब-ख़ुद-पैमाना आता है

ख़िरद वालो ख़बर भी है कभी ऐसा भी होता है
जुनूँ की जुस्तुजू में आप ही वीराना आता है

कभी क़स्द-ए-हरम को जब क़दम अपना उठाता हूँ
मिरे हर इक क़दम पर इक नया बुत-ख़ाना आता है

दर-ए-जानाँ से आता हूँ तो लोग आपस में कहते हैं
फ़क़ीर आता है और बा-शौकत-ए-शाहाना आता है

दकन की हीर से 'आज़ाद' कोई जा के ये कह दे
कि राँझे के वतन से आज इक दीवाना आता है

वही ज़िक्र-ए-दकन है और वही फ़ुर्क़त की बातें हैं
तुझे 'आज़ाद' कोई और भी अफ़्साना आता है