ख़राबा और होता है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता 
दयार-ए-दिल पे आते हैं अज़ाब आहिस्ता आहिस्ता 
सवाल-ए-वहशत-ए-जाँ के जवाब आहिस्ता आहिस्ता 
बुत-ए-काफ़िर उठाते हैं नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता 
कोई दस्त-ए-हिनाई मू-क़लम से भरता जाता है 
निगार-ए-शाम में रंग-ए-शराब आहिस्ता आहिस्ता 
बगूला इब्तिदा-ए-शौक़ में महमिल दिखाई दे 
नज़र आते हैं सहरा में सराब आहिस्ता आहिस्ता 
बहुत बोसीदा यादों के वरक़ झड़ने भी लगते हैं 
पलट उम्र-ए-गुज़िश्ता की किताब आहिस्ता आहिस्ता 
सुराग़-ए-नक़्श-ए-पा मिटते चले जाते हैं सहरा में 
उभरता है सफ़र में इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता 
कमाल-ए-शौक़-ए-नज़्ज़ारा में उर्यां होता जाता है 
सर-ए-बाम-ए-फ़लक वो माहताब आहिस्ता आहिस्ता 
कभी ख़ुशबू कभी नग़्मा कभी रंगीन पैराहन 
'नदीम' उगती है यूँ ही फ़स्ल-ए-ख़्वाब आहिस्ता आहिस्ता
        ग़ज़ल
ख़राबा और होता है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता
कामरान नदीम

