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ख़राबा और होता है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता | शाही शायरी
KHaraba aur hota hai KHarab aahista aahista

ग़ज़ल

ख़राबा और होता है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता

कामरान नदीम

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ख़राबा और होता है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता
दयार-ए-दिल पे आते हैं अज़ाब आहिस्ता आहिस्ता

सवाल-ए-वहशत-ए-जाँ के जवाब आहिस्ता आहिस्ता
बुत-ए-काफ़िर उठाते हैं नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

कोई दस्त-ए-हिनाई मू-क़लम से भरता जाता है
निगार-ए-शाम में रंग-ए-शराब आहिस्ता आहिस्ता

बगूला इब्तिदा-ए-शौक़ में महमिल दिखाई दे
नज़र आते हैं सहरा में सराब आहिस्ता आहिस्ता

बहुत बोसीदा यादों के वरक़ झड़ने भी लगते हैं
पलट उम्र-ए-गुज़िश्ता की किताब आहिस्ता आहिस्ता

सुराग़-ए-नक़्श-ए-पा मिटते चले जाते हैं सहरा में
उभरता है सफ़र में इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता

कमाल-ए-शौक़-ए-नज़्ज़ारा में उर्यां होता जाता है
सर-ए-बाम-ए-फ़लक वो माहताब आहिस्ता आहिस्ता

कभी ख़ुशबू कभी नग़्मा कभी रंगीन पैराहन
'नदीम' उगती है यूँ ही फ़स्ल-ए-ख़्वाब आहिस्ता आहिस्ता