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ख़ंजर को रग-ए-जाँ से गुज़रने नहीं देगा | शाही शायरी
KHanjar ko rag-e-jaan se guzarne nahin dega

ग़ज़ल

ख़ंजर को रग-ए-जाँ से गुज़रने नहीं देगा

गिरिजा व्यास

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ख़ंजर को रग-ए-जाँ से गुज़रने नहीं देगा
वो शख़्स मुझे चैन से मरने नहीं देगा

फिर कोई नई आस वो दे जाएगा दिल को
टूटे हुए शीशे को बिखरने नहीं देगा

दिन ढलते निकल आएगा फिर याद का सूरज
साया मिरे आँगन में उतरने नहीं देगा

हर शख़्स को मेहमान बना लेगा वो लेकिन
मुझ को कभी घर अपने ठहरने नहीं देगा

रक्खेगा न शाने पे मिरे हाथ वो अपना
ज़ख़्मों को मिरे दिल के वो भरने नहीं देगा