ख़ामोशी की क़िर्अत करने वाले लोग
अब्बू-जी और सारे मरने वाले लोग
रौशनियों के धब्बे उन के बीच ख़ला
और ख़लाओं से हम डरने वाले लोग
मिट्टी के कूज़े और इन में साँस की लौ
रब रक्खे ये बर्तन भरने वाले लोग
मेरे चारों जानिब ऊँची ऊँची घास
मेरे चारों जानिब चरने वाले लोग
आख़िर जिस्म भी दीवारों को सौंप गए
दरवाज़ों में आँखें धरने वाले लोग
ग़ज़ल
ख़ामोशी की क़िर्अत करने वाले लोग
दानियाल तरीर