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ख़ामोश धड़कनों की सदा की किसे ख़बर | शाही शायरी
KHamosh dhaDkanon ki sada ki kise KHabar

ग़ज़ल

ख़ामोश धड़कनों की सदा की किसे ख़बर

संदीप कोल नादिम

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ख़ामोश धड़कनों की सदा की किसे ख़बर
वादे बहुत किए थे वफ़ा की किसे ख़बर

ख़्वाहिश गुनाह है तो गुनहगार मैं भी हूँ
हैं जुर्म बे-हिसाब सज़ा की किसे ख़बर

कहते हैं आदमी में ख़ुदाई का अक्स है
बंदे हैं बे-नियाज़ ख़ुदा की किसे ख़बर

सारा जहाँ मरीज़, मरज़ भी है ला-इलाज
पहचाने कौन दर्द दवा की किसे ख़बर

शायद सवाब तुम को भी मिल जाए सब के साथ
सज्दे में गिर भी जाओ दुआ की किसे ख़बर