ख़ामोश अँधेरी रातों में जब सारी दुनिया सूती है
इक हिज्र का मारा रोता है और शबनम आँसू धोती है
पहले तो मोहब्बत रफ़्ता रफ़्ता होश-ओ-ख़िरद को खोती है
फिर याद किसी की आ आ कर काँटे से दिल में चुभोती है
कुछ सोचता हूँ कुछ कहता हूँ कुछ कहते हैं कुछ सुनता हूँ
जब उन के सामने होता हूँ मेरी ये हालत होती है
चारागर बस ये बतला दे वो जब मुझ से छू जाते हैं
क्यूँ जिस्म में मौजें उठती हैं क्यूँ नब्ज़ में सुरअ'त होती है
सब कहते हैं मैं दीवाना हूँ हैं कहता हूँ सब दीवाने हैं
मैं दुनिया-भर पर हँसता हूँ दुनिया-भर मुझ पर रोती है
जब चाँद उफ़ुक़ पर होता है और तारे झिलमिल करते हैं
आँखों में किसी की भोली भोली शक्ल समाई होती है
उम्मीद से रिश्ता टूट गया तुम क्या छूटे दिल छूट गया
अरमानों की बढ़ती खेती को सैल-ए-यास डुबोती है
दिल एक न इक दिन जाना था ये दिन भी आख़िर आना था
'तालिब' तुम इस का ग़म न करो ये चीज़ पराई होती है

ग़ज़ल
ख़ामोश अँधेरी रातों में जब सारी दुनिया सूती है
तालिब बाग़पती