ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था
दाम दाने में निहाँ था मुझे मालूम न था
ख़्वाहिश-ए-सूद थी सौदे में मोहब्बत के वले
सर-ब-सर इस में ज़ियाँ था मुझे मालूम न था
बातों बातों में मिरे सर को कटा देगा रक़ीब
इस क़दर सैफ़-ज़बाँ था मुझे मालूम न था
मैं तो आया था 'बक़ा' बाग़ में सुन जोश-ए-बहार
पर ये हंगाम-ए-ख़िज़ाँ था मुझे मालूम न था
ग़ज़ल
ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'