EN اردو
ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था | शाही शायरी
Khaal-e-lab aafat-e-jaan tha mujhe malum na tha

ग़ज़ल

ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

;

ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था
दाम दाने में निहाँ था मुझे मालूम न था

ख़्वाहिश-ए-सूद थी सौदे में मोहब्बत के वले
सर-ब-सर इस में ज़ियाँ था मुझे मालूम न था

बातों बातों में मिरे सर को कटा देगा रक़ीब
इस क़दर सैफ़-ज़बाँ था मुझे मालूम न था

मैं तो आया था 'बक़ा' बाग़ में सुन जोश-ए-बहार
पर ये हंगाम-ए-ख़िज़ाँ था मुझे मालूम न था