ख़ाक सहरा में उड़ाती है ये दीवानी हवा
और बहारों में करेगी चाक-दामानी हवा
पेड़ उखड़े घर गिरे आँधी चली छप्पर उड़े
चल पड़ी जिस वक़्त आबादी में दीवानी हवा
गर्मियों में मुज़्तरिब थे लोग पानी के लिए
बादलों को कर गई बरसात में पानी हवा
यूँ हुआ महसूस पत्तों के खड़कने से मुझे
चुपके चुपके करती है औराक़-गर्दानी हवा
रौशनी ही रौशनी होती जहाँ में हर तरफ़
गर चराग़ों की किया करती निगहबानी हवा
हाए फिर जज़्बात 'आसी' को हवा देने लगे
दिल के दरिया में कहीं लाए न तुग़्यानी हवा
ग़ज़ल
ख़ाक सहरा में उड़ाती है ये दीवानी हवा
आसी फ़ाईकी