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ख़ाक-ए-आशिक़ है जो होवे है निसार-ए-दामन | शाही शायरी
KHak-e-ashiq hai jo howe hai nisar-e-daman

ग़ज़ल

ख़ाक-ए-आशिक़ है जो होवे है निसार-ए-दामन

मीर मोहम्मदी बेदार

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ख़ाक-ए-आशिक़ है जो होवे है निसार-ए-दामन
ऐ मिरी जान तू मत झाड़ ग़ुबार-ए-दामन

दोस्तो मुझ को न दो सैर-ए-चमन की तकलीफ़
अश्क ही बस है मिरा बाग़-ओ-बहार-ए-दामन

सुर्ख़ जामा पे नहीं तेरे कनारी की चमक
बर्क़ इस अब्र में होती है निसार-ए-दामन

देखता क्या है गरेबाँ कि जुनून से नासेह
याँ तो साबित न रहा एक भी तार-ए-दामन

आस्तीं तक तो कहाँ उस के रसाई 'बेदार'
दस्तरस मुझ को नहीं ता-ब-कनार-ए-दामन