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खा के तेग़-ए-निगह-ए-यार दिल-ए-ज़ार गिरा | शाही शायरी
kha ke tegh-e-nigah-e-yar dil-e-zar gira

ग़ज़ल

खा के तेग़-ए-निगह-ए-यार दिल-ए-ज़ार गिरा

शऊर बलगिरामी

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खा के तेग़-ए-निगह-ए-यार दिल-ए-ज़ार गिरा
मरदुम-ए-दीद पुकारे कि वो सरदार गिरा

वाए-रुस्वाई-ए-दिल आम हुई इश्क़ की बू
शीशा-ए-मुश्क बग़ल से सर-ए-बाज़ार गिरा

न उठा ख़ाक-ए-मुज़िल्लत से कभी मिस्ल-ए-सरिश्क
जो नज़र से तिरे ऐ शोख़-ए-जफ़ा-कार गिरा

क़दम अंदाज़े से बाहर न कभी रख ऐ दिल
जो चला दौड़ के आख़िर दम-ए-रफ़्तार गिरा

ना-तवानी ने बताया है नमाज़ी मुझ को
मैं कई बार उठा और कई बार गिरा

इश्वा ओ ग़म्ज़ा ओ अंदाज़ ओ अदा हैं क़ातिल
किश्वर-ए-दिल पे मिरे लश्कर-ए-जर्रार गिरा