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कौन से शौक़ किस हवस का नहीं | शाही शायरी
kaun se shauq kis hawas ka nahin

ग़ज़ल

कौन से शौक़ किस हवस का नहीं

जौन एलिया

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कौन से शौक़ किस हवस का नहीं
दिल मिरी जान तेरे बस का नहीं

राह तुम कारवाँ की लो कि मुझे
शौक़ कुछ नग़्मा-ए-जरस का नहीं

हाँ मिरा वो मोआ'मला है कि अब
काम यारान-ए-नुक्ता-रस का नहीं

हम कहाँ से चले हैं और कहाँ
कोई अंदाज़ा पेश-ओ-पस का नहीं

हो गई उस गले में उम्र तमाम
पास शो'ले को ख़ार-ओ-ख़स का नहीं

मुझ को ख़ुद से जुदा न होने दो
बात ये है मैं अपने बस का नहीं

क्या लड़ाई भला कि हम में से
कोई भी सैंकड़ों बरस का नहीं