कौन से शौक़ किस हवस का नहीं
दिल मिरी जान तेरे बस का नहीं
राह तुम कारवाँ की लो कि मुझे
शौक़ कुछ नग़्मा-ए-जरस का नहीं
हाँ मिरा वो मोआ'मला है कि अब
काम यारान-ए-नुक्ता-रस का नहीं
हम कहाँ से चले हैं और कहाँ
कोई अंदाज़ा पेश-ओ-पस का नहीं
हो गई उस गले में उम्र तमाम
पास शो'ले को ख़ार-ओ-ख़स का नहीं
मुझ को ख़ुद से जुदा न होने दो
बात ये है मैं अपने बस का नहीं
क्या लड़ाई भला कि हम में से
कोई भी सैंकड़ों बरस का नहीं

ग़ज़ल
कौन से शौक़ किस हवस का नहीं
जौन एलिया