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कौन आया गेसुओं को परेशाँ किए हुए | शाही शायरी
kaun aaya gesuon ko pareshan kiye hue

ग़ज़ल

कौन आया गेसुओं को परेशाँ किए हुए

मैकश बदायुनी

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कौन आया गेसुओं को परेशाँ किए हुए
बर्बादी-ए-निगाह का सामाँ किए हुए

फिर चाहता हूँ ख़ंजर-ए-क़ातिल से इर्तिबात
दुशवारी-ए-हयात को आसाँ किए हुए

फिर साहिल-ए-मुराद की है दिल को आरज़ू
कश्ती को नज़्र-ए-शोरिश-ए-तूफ़ाँ किए हुए

फिर हूँ तिरे तग़ाफ़ुल-ए-ज़ाहिर का शिकवा-संज
जाँ को फ़िदा-ए-पुर्सिश-ए-पिन्हाँ किए हुए

फिर हैं हरीम-ए-नाज़ से जल्वों की बारिशें
हैरानी-ए-निगाह का सामाँ किए हुए

'मैकश' नहीं मुझे मय-ओ-मय-ख़ाना की तलाश
बैठा हूँ चश्म-ए-यार से पैमाँ किए हुए