कौन आया गेसुओं को परेशाँ किए हुए
बर्बादी-ए-निगाह का सामाँ किए हुए
फिर चाहता हूँ ख़ंजर-ए-क़ातिल से इर्तिबात
दुशवारी-ए-हयात को आसाँ किए हुए
फिर साहिल-ए-मुराद की है दिल को आरज़ू
कश्ती को नज़्र-ए-शोरिश-ए-तूफ़ाँ किए हुए
फिर हूँ तिरे तग़ाफ़ुल-ए-ज़ाहिर का शिकवा-संज
जाँ को फ़िदा-ए-पुर्सिश-ए-पिन्हाँ किए हुए
फिर हैं हरीम-ए-नाज़ से जल्वों की बारिशें
हैरानी-ए-निगाह का सामाँ किए हुए
'मैकश' नहीं मुझे मय-ओ-मय-ख़ाना की तलाश
बैठा हूँ चश्म-ए-यार से पैमाँ किए हुए
ग़ज़ल
कौन आया गेसुओं को परेशाँ किए हुए
मैकश बदायुनी