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कौन आएगा जो तू बे-सर-ओ-सामाँ होगा | शाही शायरी
kaun aaega jo tu be-sar-o-saman hoga

ग़ज़ल

कौन आएगा जो तू बे-सर-ओ-सामाँ होगा

मीर कल्लू अर्श

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कौन आएगा जो तू बे-सर-ओ-सामाँ होगा
वर्ना होगा तू न अँदेशा-ए-दरबाँ होगा

क़त्ल के बाद भी इक ऐश का सामाँ होगा
मय-ए-गुल-रंग लहू ज़ख़्म नमक-दाँ होगा

बाँकपन बस कि है मंज़ूर मिरे क़ातिल को
गुल-ए-दस्तार भी अब ग़ुंचा-ए-पैकाँ होगा

इक नज़र देख सकेगा न तिरी चश्म-ए-सियाह
सब्ज़ा-ए-ख़त भी चरागाह-ए-ग़ज़ालाँ होगा

तू वहाँ भी जो न हो यार तो फिर है अंधेर
रोज़-ए-महशर पे गुमान-ए-शब-ए-हिज्राँ होगा

दिलबरो दिल के न ले जाने में इसरार करो
तुम को क्या फ़ाएदा होगा मिरा नुक़साँ होगा

जाते हैं सब्र ओ क़रार ओ ख़िरद ओ होश ओ हवास
जरस-ए-क़ाफ़िला अपना दिल-ए-नालाँ होगा

मेरे ईसा से मिरे दर्द का दरमाँ होगा
शर्बत-ए-वस्ल इलाज-ए-तप-ए-हिज्राँ होगा

वाइ'ज़ हम को तू न हंगामा-ए-मशहर से डरा
अपने नज़दीक वो इक मज्मा-ए-याराँ होगा

आइना दीदा-ए-हैराँ तुझे दिखलाएगा
शाना-ए-ज़ुल्फ़ मिरा हाल-ए-परेशाँ होगा

दिल-ए-बे-इश्क़ से कौनैन में तू होगा ख़राब
बरहमन दैर में का'बे में मुसलमाँ होगा

गर ये हैं दस्त-ए-जुनूँ और वो हैं ख़ार-ए-जुनूँ
न तो दामन ही रहेगा न गरेबाँ होगा

शाख़-ए-गुल है क़लम-ए-फ़िक्र तो अशआ'र हैं गुल
'अर्श' दीवान मिरा रश्क-ए-गुलिस्ताँ होगा