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कट गया रिश्ता-ए-उलफ़त जो तिरा नाम आया | शाही शायरी
kaT gaya rishtha-e-ulfat jo tera nam aaya

ग़ज़ल

कट गया रिश्ता-ए-उलफ़त जो तिरा नाम आया

साक़िब लखनवी

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कट गया रिश्ता-ए-उलफ़त जो तिरा नाम आया
दिल वफ़ादार था लेकिन न मिरे काम आया

इश्क़ के हाथों चराग़ एक सर-ए-शाम आया
तीरा-बख़्ती में मिरा दिल ही मिरे काम आया

तलब-ए-मुल्क-ए-अदम से न जहाँ देख सका
अभी मंज़िल पे न उतरा था कि पैग़ाम आया

नाज़िश-ए-दहर न था मैं तो पस-ए-मुर्दन क्यूँ
महफ़िल-ए-ग़ैर में सौ बार मिरा नाम आया

शम्अ' रोई तो वो कुछ देर सही तुर्बत पर
ख़ैर कोई तो ज़माने में मिरे काम आया