करो सामान झूले का कि अब बरसात आई है
घटा उमडी है बिजली ने चमक अपनी दिखाई है
अगर झूले तू मेरे दिल के झूले में तो ऐ ज़ालिम
रग-ए-जाँ से तिरे झूले को मैं रस्सी बनाई है
यहाँ अब्र-ए-सियह में आज तेरे सुर्ख़ जोड़े ने
मुझे शाम ओ शफ़क़ दस्त-ओ-गरेबाँ कर दिखाई है
इधर है किर्मक-ए-शब-ताब उधर जुगनू गले का है
ये आलम देख कर ये बात मेरे जी में आई है
ब-क़ौल-ए-हज़रत-ए-'हातिम' 'निसार' उस वक़्त यूँ कहिए
तिरी क़ुदरत के सदक़े क्या तमाशे की ख़ुदाई है
ग़ज़ल
करो सामान झूले का कि अब बरसात आई है
मोहम्मद अमान निसार