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करो सामान झूले का कि अब बरसात आई है | शाही शायरी
karo saman jhule ka ki ab barsat aai hai

ग़ज़ल

करो सामान झूले का कि अब बरसात आई है

मोहम्मद अमान निसार

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करो सामान झूले का कि अब बरसात आई है
घटा उमडी है बिजली ने चमक अपनी दिखाई है

अगर झूले तू मेरे दिल के झूले में तो ऐ ज़ालिम
रग-ए-जाँ से तिरे झूले को मैं रस्सी बनाई है

यहाँ अब्र-ए-सियह में आज तेरे सुर्ख़ जोड़े ने
मुझे शाम ओ शफ़क़ दस्त-ओ-गरेबाँ कर दिखाई है

इधर है किर्मक-ए-शब-ताब उधर जुगनू गले का है
ये आलम देख कर ये बात मेरे जी में आई है

ब-क़ौल-ए-हज़रत-ए-'हातिम' 'निसार' उस वक़्त यूँ कहिए
तिरी क़ुदरत के सदक़े क्या तमाशे की ख़ुदाई है