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करेंगे ज़ुल्म दुनिया पर ये बुत और आसमाँ कब तक | शाही शायरी
karenge zulm duniya par ye but aur aasman kab tak

ग़ज़ल

करेंगे ज़ुल्म दुनिया पर ये बुत और आसमाँ कब तक

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़

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करेंगे ज़ुल्म दुनिया पर ये बुत और आसमाँ कब तक
रहेगा पीर ये कब तक रहोगे तुम जवाँ कब तक

ख़ुदावंदा इन्हें किस दिन शुऊर आएगा दुनिया का
रहेंगी बे-पढ़ी-लिक्खी हमारी लड़कियाँ कब तक

फिरेगा और कितने दिन ख़याली पार घोड़े पर
उड़ेगा शेर-गोई में न इंजन का धुआँ कब तक

इनान-ए-हुक्मरानी देखिए किस दिन ख़ुदा लेगा
रहेंगे क़िस्मतों पर हुक्मराँ ये आसमाँ कब तक

दिए जाएँगे कब तक शैख़-साहिब कुफ़्र के फ़तवे
रहेंगी उन के संदूक़चा में दीं की कुंजियाँ कब तक

चली जाएगी इक ही रुख़ हवा ताकि ज़माने की
न पूरा होगा तेरा दौर ये ऐ आसमाँ कब तक

तहम्मुल ख़त्म होते ही बड़ी बद-नामियाँ होंगी
तुम्हारे ख़ौफ़ से 'परवीं' न खोलेगी ज़बाँ कब तक