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कल नज़र आया चमन में इक अजब रश्क-ए-चमन | शाही शायरी
kal nazar aaya chaman mein ek ajab rashk-e-chaman

ग़ज़ल

कल नज़र आया चमन में इक अजब रश्क-ए-चमन

नज़ीर अकबराबादी

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कल नज़र आया चमन में इक अजब रश्क-ए-चमन
गल-रुख़ ओ गुल-गूं क़बा ओ गुल-अज़ार ओ गुल-बदन

महर-ए-तलअत ज़ोहरा-पैकर मुश्तरी-रू मह-जबीं
सीम-बर सीमाब-तब ओ सीम-साक़ ओ सीम-तन

नाज़नीं नाज़-आफ़रीं नाज़ुक-बदन नाज़ुक-मिज़ाज
ग़ुंचा-लब रंगीं-अदा शक्कर-दहाँ शीरीं-सुख़न

बे-मुरव्वत बेवफ़ा बेदर्द बे-परवा ख़िराम
जंग-जू क़त्ताल-वज़ ओ सरफ़राज़ ओ सर-फ़गन

मुब्तला ऐसे ही ख़ुश-वज़ओं के होते हैं 'नज़ीर'
बे-क़रार ओ दिल-फ़िगार ओ ख़स्ता-हाल बे-वतन