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कल मुंज वज़ीर दिल थे क़ासिद बशारत आया | शाही शायरी
kal munj wazir dil the qasid bashaarat aaya

ग़ज़ल

कल मुंज वज़ीर दिल थे क़ासिद बशारत आया

क़ुली क़ुतुब शाह

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कल मुंज वज़ीर दिल थे क़ासिद बशारत आया
या हज़रत-ए-सुलैमाँ कन थे इशारत आया

ख़ुश-नैन नीर सेती तन ख़ाक कूँ गलावो
दिल के मंधिर कूँ सर थे वक़्त-ए-इमारत आया

मेरा सौ ऐब ढाँको ऐ मय सूँ भीगे कपड़े
ओ पाक-दामन आपी हम्ना बचारत आया

मुंज यार हुस्न थे जे बोले हैं बाताँ बेहद
यक बाब है सो उन में जो इस इबारत आया

जागा सो हर यकस का होवेगा आज प्रगट
ओ छंद भ्रया सो चंदा बैठन सदारत आया

जम के सो तख़्त ऊपर जे ताज सुर चंद है
चिमटे की देखो हिम्मत जो इस हक़ारत आया

उस शोख़ दीद थे यूँ ईमाँ अपस सँभालें
ओ साहिर-ए-कमाँ-दार करने सो ग़ारत आया

'क़ुतबा' तूँ दास शह का जम फ़ैज़ उस थे माँगें
सौदा है तुज परम सब वक़्त-ए-तिजारत आया