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कैसी आशुफ़्तगी-ए-सर है यहाँ | शाही शायरी
kaisi aashuftagi-e-sar hai yahan

ग़ज़ल

कैसी आशुफ़्तगी-ए-सर है यहाँ

अासिफ़ जमाल

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कैसी आशुफ़्तगी-ए-सर है यहाँ
रास सहरा यहाँ न घर है यहाँ

एक ग़म है कि बे-मुदावा है
एक रोना कि उम्र भर है यहाँ

जो भी काविश है बे-सिला बे-सूद
जो शजर है वो बे-समर है यहाँ

इक मसाफ़त कि तय नहीं होती
मंज़िलों मंज़िलों सफ़र है यहाँ

यूँ रिवायत से कट गए लेकिन
तजरबा जो है तल्ख़-तर है यहाँ