EN اردو
कैसे रखेंगे सर पे किसी का उधार हम | शाही शायरी
kaise rakhenge sar pe kisi ka udhaar hum

ग़ज़ल

कैसे रखेंगे सर पे किसी का उधार हम

अब्दुल मतीन नियाज़

;

कैसे रखेंगे सर पे किसी का उधार हम
क़र्ज़-ए-वफ़ा में करते हैं सर का शुमार हम

अफ़्सोस इसी चमन में हुए बे-विक़ार हम
जिस को कि चाहते रहे दीवाना-वार हम

अल्फ़ाज़ मदह-ख़्वाँ थे क़लम थे बिके हुए
कैसे तराश लेते कोई शाह-कार हम

मिलना हमारा ख़ाक में ज़ाएअ' न जाएगा
दे जाएँगे चमन को शुऊ'र-ए-बहार हम

कोई सिपर बचा न सकेगी हुज़ूर को
तलवार से सुख़न की करेंगे जो वार हम

ऐ ज़िंदगी न हम से छुपा राज़-ए-ज़िंदगी
हर साँस में हैं तेरे ही आईना-दार हम

डालें अब एक और रिवायत की दाग़-बेल
दुश्मन पे ऐ 'नियाज़' करें ए'तिबार हम