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कई सपने अधूरे रह गए हैं | शाही शायरी
kai sapne adhure rah gae hain

ग़ज़ल

कई सपने अधूरे रह गए हैं

नदीम फर्रुख

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कई सपने अधूरे रह गए हैं
मिरी मुट्ठी में लम्हे रह गए हैं

ख़ुशामद का हुनर हम को न आया
इसी बाइ'स तो पीछे रह गए हैं

परेशाँ इस लिए फिरते हैं बादल
बहुत से खेत प्यासे रह गए हैं

हम अपने ज़ीस्त के अंधे सफ़र में
अकेले थे अकेले रह गए हैं

बहुत ख़ुश हो चराग़ों को बुझा कर
वो देखो चाँद तारे रह गए हैं