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कई भयानक काली रातों के अँधियारे में | शाही शायरी
kai bhayanak kali raaton ke andhiyare mein

ग़ज़ल

कई भयानक काली रातों के अँधियारे में

वहाब दानिश

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कई भयानक काली रातों के अँधियारे में
तन्हाई में जलती बत्ती घर में हुई असीर

कोई अपना बन दरवाज़े दस्तक दे इक बार
ख़ामोशी की पीठ पे खींचे सीधी एक लकीर

सीने में टूटी हर ख़्वाहिश की नाज़ुक नन्ही नोक
कजलाई आँखों के आगे ख़्वाबों की ताबीर

तन का जोगी मन का साइल माँगे मीठी नींद
रोटी कपड़ा पैसा रख के रोए रात फ़क़ीर