कहिए किस दर्जा वो ख़ुर्शीद-जमाल अच्छा है
मुख़्तसर ये कि वो आप अपनी मिसाल अच्छा है
दूसरों के दिल-ए-नाज़ुक का ख़याल अच्छा है
कोई पूछे तो मैं कह देता हूँ हाल अच्छा है
आए दिन की तो नहीं ठीक जुनूँ-ख़ेज़ी-ए-दिल
मौसम-ए-गुल तो ये बस साल-ब-साल अच्छा है
मुझ को काफ़ी है मैं समझूँगा उसे हुस्न-ए-जवाब
बस वो फ़रमा दें कि साइल का सवाल अच्छा है
ये जो बिगड़ा तिरी तक़दीर बिगड़ जाएगी
दिल है दिल ये इसे जितना भी सँभाल अच्छा है
इस से ज़ाइल हो 'नज़र' उस से हो दिल तक रौशन
रू-ए-ख़ुर्शीद से वो रू-ए-जमाल अच्छा है

ग़ज़ल
कहिए किस दर्जा वो ख़ुर्शीद-जमाल अच्छा है
मोहम्मद अब्दुलहमीद सिद्दीक़ी नज़र लखनवी