कहीं जो दिल न लगावें तो फिर उदास फिरें
वगर लगावें तो मुश्किल कि बे-हवास फिरें
हमें भी होवे इजाज़त कि शम्अ-रू तुझ पर
पतंग की नमत इक दम तू आस-पास फिरें
तिरी गली में भला इतनी तो हमें हो राह
कि जब तक अपना वहाँ जी हो बे-हिरास फिरें
उठा दे हम से जो बैठे होऊँ को अब की फ़लक
तो आरज़ू है ये जी में कि बे-क़यास फिरें
न ख़त किसी का पढ़े है 'हसन' न वो अर्ज़ी
कहाँ तलक लिए हम अपना इल्तिमास फिरें
ग़ज़ल
कहीं जो दिल न लगावें तो फिर उदास फिरें
मीर हसन