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कहीं जो दिल न लगावें तो फिर उदास फिरें | शाही शायरी
kahin jo dil na lagawen to phir udas phiren

ग़ज़ल

कहीं जो दिल न लगावें तो फिर उदास फिरें

मीर हसन

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कहीं जो दिल न लगावें तो फिर उदास फिरें
वगर लगावें तो मुश्किल कि बे-हवास फिरें

हमें भी होवे इजाज़त कि शम्अ-रू तुझ पर
पतंग की नमत इक दम तू आस-पास फिरें

तिरी गली में भला इतनी तो हमें हो राह
कि जब तक अपना वहाँ जी हो बे-हिरास फिरें

उठा दे हम से जो बैठे होऊँ को अब की फ़लक
तो आरज़ू है ये जी में कि बे-क़यास फिरें

न ख़त किसी का पढ़े है 'हसन' न वो अर्ज़ी
कहाँ तलक लिए हम अपना इल्तिमास फिरें