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कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया | शाही शायरी
kahen kya tum sun be-dard logo kisi se ji ka maram na paya

ग़ज़ल

कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया

आबरू शाह मुबारक

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कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया
कभी न बूझी यथा हमारी बिरह नीं क्या अब हमें सताया

लगा है बिर्हा जिगर कूँ खाने हुए हैं तीरों के हम निशाने
देवें हैं सौतें हमन कूँ ताने कि तुझ को कबहूँ न मुँह लगाया

रखे न दिल में किसी की चिंता गले में डाले बिरह की कंठा
दरस की ख़ातिर तुम्हारे मनता भिकारन अपना बरन बनाया

लगी हैं जी पर बिरह की घातें तलफ़ तलफ़ कर बहाएँ रातें
तुम्हारी जिन नीं बनाईं बातें अकारत अपना जनम गँवाया

गिला ममोला ये सब अबस है अपस के ओछे करम का जस है
हमारा प्यारे कहो क्या बस है तुम्हारे जी में अगर यूँ आया

जो दुख पड़ेगा सहा करूँगी जसे कहोगे रहा करूँगी
तुमन कूँ निस दिन दुआ करूँगी सखी सलामत रहो ख़ुदा-या