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कहे देता हूँ, गो है तो नहीं ये बात कहने की | शाही शायरी
kahe deta hun, go hai to nahin ye baat kahne ki

ग़ज़ल

कहे देता हूँ, गो है तो नहीं ये बात कहने की

इरफ़ान सत्तार

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कहे देता हूँ, गो है तो नहीं ये बात कहने की
तिरी ख़्वाहिश नहीं दिल में ज़ियादा देर रहने की

बचा कर दिल गुज़रता जा रहा हूँ हर तअ'ल्लुक़ से
कहाँ इस आबले को ताब है अब चोट सहने की

रग-ओ-पै में न हंगामा करे तो क्या करे आख़िर
इजाज़त जब नहीं इस रंज को आँखों से बहने की

बस अपनी अपनी तरजीहात, अपनी अपनी ख़्वाहिश है
तुझे शोहरत कमाने की, मुझे इक शेर कहने की

जहाँ का हूँ, वहीं की रास आएगी फ़ज़ा मुझ को
ये दुनिया भी भला कोई जगह है मेरे रहने की?

जो कल 'इरफ़ान' पर गुज़री सुना कुछ उस के बारे में?
ख़बर तुम ने सुनी तूफ़ान में दरिया के बहने की