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कहाँ से आ गया कहाँ ये शाम भी कहाँ हुई | शाही शायरी
kahan se aa gaya kahan ye sham bhi kahan hui

ग़ज़ल

कहाँ से आ गया कहाँ ये शाम भी कहाँ हुई

पयाम फ़तेहपुरी

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कहाँ से आ गया कहाँ ये शाम भी कहाँ हुई
न हम-नफ़स न हम-ज़बाँ ये शाम भी कहाँ हुई

बुझी नज़र बुझे क़दम न राहबर न हम-सफ़र
न रहगुज़र न कारवाँ ये शाम भी कहाँ हुई

न शम-ए-दिल न शम्अ-ए-रुख़ नुजूम-ए-शब न माह-ए-शब
निगाह-ओ-दिल धुआँ धुआँ ये शाम भी कहाँ हुई

न गेसुओं की छाँव है न आरिज़ों की चाँदनी
न माँग की वो कहकशाँ ये शाम भी कहाँ हुई

हयात-ए-ग़म के बोझ से दबी दबी थकी थकी
लुटी लुटी सी बज़्म-ए-जाँ ये शाम भी कहाँ हुई

लगी है जैसे आग सी चिता में जल रहा हूँ मैं
पिघल रहे हैं जिस्म-ओ-जाँ ये शाम भी कहाँ हुई

'पयाम' उस मक़ाम पर है आज दिल का कारवाँ
जहाँ ज़मीं न आसमाँ ये शाम भी कहाँ हुई