कह रही है सारी दुनिया तेरा दीवाना मुझे
तेरी नज़रों ने बना डाला है अफ़्साना मुझे
इश्क़ में अब मिल गई है मुझ को मेराज-ए-जुनूँ
अब तो वो भी कह रहे हैं अपना दीवाना मुझे
दर्स-ए-इबरत है तुम्हारे वास्ते मेरा मआल
ग़ुंचा ओ गुल को सुनाना है ये अफ़्साना मुझे
इक निगाह-ए-नाज़ ने साक़ी की ये क्या कर दिया
रफ़्ता रफ़्ता कह उठे सब पीर-ए-मय-ख़ाना मुझे
तू सरापा नूर है मैं तेरा अक्स-ए-ख़ास हूँ
कह रहे हैं यूँ तिरा सब आईना-ख़ाना मुझे
सुन रही थी शौक़ से दुनिया जिसे ऐ हम-नफ़स
याद है हाँ याद है वो मेरा अफ़्साना मुझे
नूर से भर पूर हो जाती है बज़्म-ए-आरज़ू
जब कभी वो देखते हैं बे-हिजाबाना मुझे
अल-मदद ऐ ज़ोहद बढ़ कर रोक ले मेरे क़दम
तिश्नगी फिर ले चली है सू-ए-मय-ख़ाना मुझे
हम-नफ़स मेरी तो फ़ितरत ही सना-ए-हुस्न है
इश्क़ के बंदे कहा करते हैं दीवाना मुझे
मुझ को 'क़ैसर' मय-कदे से निकले इक मुद्दत हुई
याद करते हैं अभी तक जाम ओ पैमाना मुझे
ग़ज़ल
कह रही है सारी दुनिया तेरा दीवाना मुझे
क़ैसर निज़ामी