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कफ़ील-ए-साअ'त-ए-सय्यार रक्खा होता है | शाही शायरी
kafil-e-saat-e-sayyar rakkha hota hai

ग़ज़ल

कफ़ील-ए-साअ'त-ए-सय्यार रक्खा होता है

इलियास बाबर आवान

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कफ़ील-ए-साअ'त-ए-सय्यार रक्खा होता है
कि हम ने दिल यूँही सरशार रक्खा होता है

मैं रख के जाता हूँ खिड़की में कुछ गुलाब के फूल
किसी ने साया-ए-दीवार रक्खा होता है

अजीब लोग हैं दीवार-ए-शब पे चलते हैं
चराग़ जेब में बेकार रक्खा होता है

कभी-कभार उसे फल फूल लगने लगते हैं
हमारे शानों पे जो बार रक्खा होता है

अजीब शहर है पत्थर उसी पे आता है
जो आइना पस-ए-दीवार रक्खा होता है