कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो
दिन मिरी ज़ीस्त के कुछ और बढ़ा जाते हो
इक झलक तुम जो लब-ए-बाम दिखा जाते हो
दिल पे इक कौंदती बिजली सी गिरा जाते हो
मेरे पहलू में तुम आओ ये कहाँ मेरे नसीब
ये भी क्या कम है तसव्वुर में तो आ जाते हो
ताज़ा कर जाते हो तुम दिल में पुरानी यादें
ख़्वाब-ए-शीरीं से तमन्ना को जगा जाते हो
इतनी हम को भी दिखाते हो मसीहा-नफ़सी
हसरत-ए-मुर्दा को आ आ के जिला जाते हो
निगह-ए-लुत्फ़ में जादू है तुम्हारी जानाँ
सारे शिकवे-गिले इक पल में भुला जाते हो
शोला-ए-तूर से तू वादी-ए-ऐमन ही जला
तुम जहाँ आते हो इक आग लगा जाते हो
है तो 'नैरंग' वही इश्क़ का रोना-धोना
इन्ही बातों में नया रंग दिखा जाते हो
ग़ज़ल
कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो
ग़ुलाम भीक नैरंग