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कभी सराब करेगा कभी ग़ुबार करेगा | शाही शायरी
kabhi sarab karega kabhi ghubar karega

ग़ज़ल

कभी सराब करेगा कभी ग़ुबार करेगा

सऊद उस्मानी

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कभी सराब करेगा कभी ग़ुबार करेगा
ये दश्त-ए-जाँ है मियाँ ये कहाँ क़रार करेगा

अभी ये बीज के मानिंद फूटता हुआ दुख है
बहुत दिनों में कोई शक्ल इख़्तियार करेगा

ये ख़ुद-पसंद सा ग़म है सो ये उमीद भी कम है
कि अपने भेद कभी तुझ पे आश्कार करेगा

तमाम उम्र यहाँ किस का इंतिज़ार हुआ है
तमाम उम्र मिरा कौन इंतिज़ार करेगा

नशे की तरह मोहब्बत भी तर्क होती नहीं है
जो एक बार करेगा वो बार बार करेगा