काटूँगा शब तड़प कर रो कर सहर करूँगा 
फ़ुर्क़त में तेरी जानाँ यूँ ही बसर करूँगा 
कहता है इश्क़-ए-दिलबर फ़ुर्क़त में हो न मुज़्तर 
दिल में गुज़र करूँगा आँखों में घर करूँगा 
आता नहीं वो दिलबर कहता है रोज़ मुझ से 
आने की अपने तुझ को पहले ख़बर करूँगा 
तुम जा रहे हो जाओ ऐ बुत मिरा ख़ुदा है 
सीने को रंज-ए-फ़ुर्क़त पत्थर जिगर करूँगा 
क़तरों में चश्म-ए-तर के तस्वीर-ए-दिलरुबा है 
हसरत से क्यूँ न उस की जानिब नज़र करूँगा 
आशिक़ का क़ाफ़िला अब जाता है उन के दर पर 
बाँग-ए-जरस बनूँगा नालों को सर करूँगा 
तुर्बत को देख कर मैं कहता हूँ ऐ 'जमीला' 
ऐ गोर मैं भी तेरा आबाद घर करूँगा
        ग़ज़ल
काटूँगा शब तड़प कर रो कर सहर करूँगा
जमीला ख़ुदा बख़्श

